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4 Nov 2019 · 1 min read

जलता रहा वो

दीपक
जलता रहा
रोशनी
बिखेरता रहा
लोग अनदेखा
करते रहे
न दे सका
अहसास
होना का

बुझ गया
दीपक
फैल गया
अंधेरा
राहगीर
भटकने लगे
राह
ढूँढने लगे

रखो साथ
यादों को
उनकी
जो
जलते रहे
रोशनी
के लिए
तम्हारी

जलाओ
दीये
कभी
अपनों
के लिए
अपने अपनों
के लिए
कभी परायों
के लिए

रखो
दिल में
बैठा के
उनको
एक होगा
अहसास
कभी दूर
ही नहीं थे
वो

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

Language: Hindi
192 Views
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