जलता रहा वो
दीपक
जलता रहा
रोशनी
बिखेरता रहा
लोग अनदेखा
करते रहे
न दे सका
अहसास
होना का
बुझ गया
दीपक
फैल गया
अंधेरा
राहगीर
भटकने लगे
राह
ढूँढने लगे
रखो साथ
यादों को
उनकी
जो
जलते रहे
रोशनी
के लिए
तम्हारी
जलाओ
दीये
कभी
अपनों
के लिए
अपने अपनों
के लिए
कभी परायों
के लिए
रखो
दिल में
बैठा के
उनको
एक होगा
अहसास
कभी दूर
ही नहीं थे
वो
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल