कविता: जर्जर विद्यालय भवन की पीड़ा
कविता- जर्जर विद्यालय भवन की पीड़ा
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तपती धूप तेज बारिश, हर मौसम से मैं लड़ा।
आंख में आंसू दिल मे पीड़ा, लेकर जर्जर भवन खड़ा।।
आंख में आंसू……….
बात है मेरे स्वाभिमान की, क्षति हो रही है ज्ञान की।
मैं प्रयोगशाला हूँ विद्या की, फूट रहा है विद्या का घड़ा।।
आंख में आंसू……….
रो – रोकर सुनाऊँ कहानी, छत से टपके बरसाती पानी।
दीवार से गिरती मोती पपड़ी, कूड़े का अंबार चढ़ा।।
आंख में आंसू……….
कभी थे बच्चे मुझमें पढ़ते, रबर पेंसिल के लिए लड़ते।
शिक्षक बंधु पाठ पढ़ाते, अब दरवाजे पर ताला जड़ा।।
आंख में आंसू……….
बच्चे शिक्षक मुझसे दूर, लगता बेबस और मजबूर।
उड़ गए रंग मेरे सारे, एक कोने में मैं पड़ा।।
आंख में आंसू……….
समाज का मैं अंग निराला, कौन है मेरी सुनने वाला।
भूल गया वह भी अब तो, जो कभी था मुझमें पढ़ा।।
आंख में आंसू……….
हाथ जोड़कर करूं निवेदन, बनवा दीजिए नवीन भवन।
सजे दीवारें चित्र- तस्वीरों से, और छाया देवे पेड़ बड़ा।।
आंख में आंसू……….
तपती धूप तेज बारिश, हर मौसम से मैं लड़ा।
आंख में आंसू दिल मे पीड़ा, लेकर जर्जर भवन खड़ा।।
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स्वरचित कविता 📝
✍️रचनाकार:
राजेश कुमार अर्जुन