“जरूर कोई बात है”
“जरूर कोई बात है”
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बादल की ओट में,
छूप रहा चांद है,
विकल चांदनी उदास है,
जरूर कोई बात है ।
बीत गया श्रेष्ठ मास,
बुझ गई धरती की प्यास,
छा रही घनघोर घटाएं,
सावन की काली रात है,
जरूर कोई बात है।
चल रही है तीव्र वायु,
झूम रहे पौधों की डाल,
बिखर रही प्राकृतिक आभा,
मध्यम बरसात है,
जरूर कोई बात है।
झूलों की बहार है,
कजरी की ललकार है,
धानी चादर ओढ़े धरती,
बिखरी हरियाली की सौगात है,
जरूर कोई बात है।।
~वर्षा(एक काव्य संग्रह)के/राकेश चौरसिया