जरूरी कहां कुल का दिया कुल को रोशन करें
जरूरी कहां कुल – दिया कुल को रोशन करें ,
ऊचे कुल में होकर भी संगति मार देती है !
भंवरों जरा बगीचों से संभल कर निकलो,
फूलों की सुगंध अच्छे-अच्छे की मति मार देती है ! !
बीच भंवर में नैया है किनारा करके आना है ,
कुछ लोगों के ताने , कुछ पराजय मार देती है !
कई तपिश सहता है स्वर्ण जब चमक वो पाता है ,
तप कर बढ़ता है मोल यहां, सहज कहां से होता है !
कांटो में खिलता है देखो जिसको फूल गुलाब कहे ,
खुशबू बिखेरता मगर कांटो की सैयां मार देती है !
चार कदम चल कर के लौट आना उचित कहां है ,
संघर्ष छुपा है जीत में, मंजिल इतनी सहज कहां है !
सफलता के रास्ते पर कई असफलता चिंइत हैं ,
फिर फिर वापस लौट आने की आदत मार देती है !
✍कवि दीपक सरल