जरूरत
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
जुर्म पे जुर्माना भी अक़ीदत
ये ख़ुदा की खुदाई सी हकीकत
मिसाल वो दी जाये जो पूरी उतरे
अधूरी सजी बारात कौन गले से उतरे
मुकर जाते हैं लोग पीठ फिरते ही
अब ऐसी भी तारीफ़ क्या जो झूटी निकले
मिरे ख्वाब मिरी ख्वाहिश को अमल देंगे मिरे ख्वाजा
चढ़ाई है रेशमी चादर अब दुआ पूरी समझें
तत्वज्ञान कभी भी काम करते हैं भरोसा हो जो
आदमी की नियत से नियंत्रित उसकी नियति समझें
पलट कर देखिए मुस्कुरा रहा है चमन अबोध का
दर्द की रात ढलने को चली है तस्सली रखिये