जरूरत
गजल
ना दिल की ज़रूरत ना दिलबर की ज़रूरत ,
हर खूबसुरती को है शायर की ज़रूरत..
हर बीज का अरमां है आकाश को छूना,
हर बूंद में सिमटी है समन्दर की ज़रूरत..
सदियों से बसी है हर आदमी के जेहन में,
जो पास है उससे बेहतर की ज़रूरत..
घर की ज़रूरतों के लिए छोड़ दिया घर,
घर छोड़ कर महसूस हुयी घर की ज़रूरत..
ना दिल की ज़रूरत ना दिलबर की ज़रूरत,
हर खूबसूरती को है शायर की ज़रूरत!!
मौलिक
आभा सिंह
लखनऊ उत्तर प्रदेश