जरूरत है न्याय की
दिनांक 22 / 6 / 19
न्याय उलझा है
गवाह और सबूत में
अस्मिता लूट रही
खुले बाजार में
शैतान घुम रहे
समाज में
बच्चियाँ भयभीत हैं
भेड़ियों से
तारीख पर तारीख में
उलझा है न्याय
बदल जाते है गवाह
मिटा दिये जाते हैं सबूत
न्याय की देवी बांधे है
आँखो पर पट्टी
कैसे मिलेगा इन्साफ
जरूरत है
त्वरित न्याय की
मनोबल न टूटे
पीड़ितों का
बदलें पुरातन कानून
गवाहों पर हो
सख्ती कानून की
पुलिस रहे ईमानदार
तब खत्म होगा
गवाह गुमराह करने
सबूत मिटाने का
घिनोना खेल
समाज होगा निर्भिक
आम आदमी निडर
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल