जरूरत के हिसाब से ही
जरूरत के हिसाब से ही
चलते हैं ताल्लुख
वक्त की चाल में बदल जाते हैं
बने रिश्ते
जो जरूरत होता हैं
वही अक्सर वही
जरूरी नही होता
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद
जरूरत के हिसाब से ही
चलते हैं ताल्लुख
वक्त की चाल में बदल जाते हैं
बने रिश्ते
जो जरूरत होता हैं
वही अक्सर वही
जरूरी नही होता
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद