जरूरत के बादल
आजाद समय के आसमान पर जब।
जरूरत के कुछ बादल छाने लगे।
हम दुश्मनों में देखो उन्हें आज।
प्यारे से दोस्त नजर आने लगे।
बाहों की कमानें कुछ खुलने लगी ।
हाथों को हाथ फिर सहलाने लगे।
नजर उनकी यूँ बिछ गई राहों में ।
होठों के कोने मुस्कुराने लगे।
तूफां लौटे हैं पुराने पते पर।
और हम मेजबानी निभाने लगे।
।।मुक्ता शर्मा ।।