जरुरत ही मित्रता
समय-समय की बात है। जब-जब जरूरतें पड़ी है, तब-तब मित्रता बढ़ी है। जब किसी व्यक्ति को आपसे जरूरतें रहेंगी और आपको भी उस व्यक्ति से जरूरतें रहेंगी, तब ही आप दोनों की मित्रता होगी। जब तक एक दूसरे की जरूरतें पूरा नहीं होंगी तब तक मित्रता बनी रहेंगी।
जरूरत एक ऐसी वस्तु है कि पल भर में अनजान व्यक्ति से जान पहचान हो जाती है और मित्रता की रास्ता साफ कर देती है। जरूरत की वजह से ही दुश्मन भी दोस्त बन जाते हैं। अपने से छोटे व्यक्ति भी बराबरी के दिखने लगते हैं। जब तक जरूरतें बनी रहती है तब तक मित्रता बनी रहती है और एक दूसरे में घनिष्ठा पैदा करती है। दूरियां भी नजदीकी लगने लगती है।
जरूरत के ही वजह से राम और सुग्रीव की मित्रता हुई थी। नहीं तो मित्रता क्यों? कहां अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र श्री राम और कहां वन में रहने वाले वानरों के राजा सुग्रीव। फिर भी मित्रता हुई, क्यों? क्योंकि दोनों को एक-दूसरे से जरूरतें थी और जरूरतें भी ऐसी की दोनों की जरूरतें एक समान थी। क्योंकि राम की पत्नी सीता का हरण रावण ने किया था, तो वही सुग्रीव की पत्नी का हरण उसके बड़े भाई बाली ने किया था। एक तरफ श्री राम राज्य अभिषेक होने से वंचित रह गए थे और 14 वर्षों का वनवास मिला, तो वहीं सुग्रीव को भी राजपाट से उसके भाई ने वंचित कर दिया था साथ ही अपना जान बचाने के लिए सुग्रीव राज्य को छोड़ जंगल को चले गए थे। दोनों बेचारे पत्नी के वियोग में तड़प रहे थे, जिसके वजह से दोनों की मित्रता हुई और दोनों की मित्रता रहते हुए दोनों की जरूरतें पूरा हुई। दोनों की जैसे ही जरूरतें पूरा हुई, वैसे ही मित्रता समाप्त हो गई।
जैसे दो व्यक्तियों में से किसी भी एक व्यक्ति का भी जरूरतें समाप्त हो जाती है तो वैसे ही मित्रता समाप्त जाती हैं। अब नजदीकियां भी दूरी लगने लगती है। जाने पहचाने भी अनजाने लगने लगते हैं। जो कभी दोनों एक दूसरे की इतना करीब होते थे कि जब भी मुलाकात होती थी तो हालचाल होती थी। वह अब सामने से आदमी के गुजरने के बाद भी एक-दूसरे को पहचानते भी नहीं हैं। वैसे रास्ते से गुजर जाते हैं।
इस तरह से धीरे-धीरे मित्रता समाप्त हो जाती है। बस एक याद सी रह जाती है कि कभी हम दोनों मित्र हुआ करते थे।
लेखक – जय लगन कुमार हैप्पी ⛳