जरा-सी धूप जाड़ों की (गीतिका)
जरा-सी धूप जाड़ों की (गीतिका)
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(1)
जो छू लो तो करामाती ,जरा-सी धूप जाड़ों की
बड़ी मुश्किल से मिल पाती ,जरा-सी धूप जाड़ों की
(2)
जिन्हें है दर्द घुटनों का ,जो छत पर जा नहीं पाते
उन्हें सपनों में है आती ,जरा-सी धूप जाड़ों की
(3)
घने कोहरे में सूरज देर से अक्सर निकलता जब
किसी दुल्हन-सी शर्माती ,जरा-सी धूप जाड़ों की
(4)
तनिक- सी देर में फुर्ती बदन में भर यह देती है
दवा अनमोल कहलाती ,जरा-सी धूप जाड़ों की
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रचयिता: रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उ.प्र.) मो. 9997615451