जरा पूछना उससे !
मुझें यूँ बेकस छोड़,रंगीन कर रही हो,
मेरी जान,तुम रक़ीब की राते ,
जरा पूछना उससे,
क्या उसे भी इश्क़ है तुम्हारी रूह से,
जैसे मैं करता हूं,
या बस ये खूबसूरत जिस्म का सौदा भर है,
उससे पूछना तुम जरा,
की अग़र तुम्हारे लबों पे ये लाली ना होती,
तेरे कानों में झूमती ये बाली ना होती,
ना होती अगर तेरे अधरों से छलकती ये मधुशाला,
झील से भी गहरी अगर तेरी आंखे ना होती,
ना होते अगर तेरे ये नैंन नक्श नशीले,
तेरे आधे आच्छादन से झलकता,
अगर तेरा ये मनमोहन यौवन ना होता,
क्या तब भी गुजरता,तेरे संग रक़ीब अपनी राते,
सुबह उठकर अगर,
तू बेज़ार बिस्तर की सिलवटे बदलने को राजी ना होती,
जरा पूछने उससे,
क्या वो भी तुझसे मेरे जैसी मोहब्बत करता है,
या बस ये खूबसूरत जिस्म का सौदा भर है,
मुझें यूँ बेकस छोड़,रंगीन कर रही हो,
मेरी जान,तुम रक़ीब की राते।
दीपक ‘पटेल’