जरा चाँद को तुम निकलने तो दो
गज़ल
122……122……122…..12
जरा चाँद को तुम निकलने तो दो।
मेरे चांद को भी सँवरने तो दो।
जो देखेगा सोलह सिँगारों में वो,
कलाओं में सोलह भटकने तो दो।
वो सोने की चिड़ियां भी आयेगी फिर,
कि कुछ घोंसले भी लटकने तो दो।
खिलेंगे बहुत फूल चारों तरफ,
कि कलियों पे भौरों को मरने तो दो।
हमारा तुम्हारा सफर एक है,
पकड़ हाथ मंजिल को चलने तो दो।
तुम्हें प्यार की मुझसे चाहत जो है,
मुझे अपने दिल में उतरने तो दो।
मेरे प्यार की कोई सीमा नहीं,
मुझे अपनी हद से गुजरने तो दो।
ये है प्रेम क्या चीज़ मालुम नहीं,
मुझे प्रेम पाशों में बँधने तो दो।
……..✍️ प्रेमी