जय हो
मुझे पता नही ये मैंने क्या लिखा है, पर कुछ तो है…
अपने आप को बचाईये, अपने होने को जाया मत जाने दीजिए ;
युद्ध जब धर्म के नाम हो जाय, तो लोग पागल पशुओं की तरह मारे जाने लगते हैं।
इस लिए तब ज्यादा जरूरी हो जाता है धर्म और पाखंड में अंतर् करना।
उसके बिना न आप खुद के पतन को रोक सकते हैं न समाज के पतन को।
अब निर्णय आप का है…जय हो
…सिद्धार्थ
जब कोई देश को दोनों हांथों से लूटे और गर्त की ओर ले जाए फिर भी देशवासी उसे विकास पुरुष समझें।
इसे ही राजन्त्र की अगुआई करना कहा जाना चाहिए।
लोकतंत्र के जीर्ण पीठ पे राजतन्त्र की सवारी चली आ रही है
और हम आंख फाड़े मुंह बाये विकास देख रहे हैं…जय हो
…सिद्धार्थ