जय हिन्द की सेना
मात्रभूमि हित सच्ची प्रीत वालों को नमन
हर प्रण निभाते जो रक्षार्थ निज चमन
अब न चक्षु जलधारा ,प्रतिशोध की ज्वाला हो
किंचित विलाप न अब चण्डी गल मुण्डमाला हो
व्योम मार्ग से सिंह गर्जना हो
दशों दिशाओं में गूँजे शत्रु भेदना
सफल हर वार हो ऐसा अर्जुन सा वज्रपात
अन्तिम अणु थर्राए हो ऐसा प्रतिघात
पुन: धरा पर जो चित्कार हुआ
पाक धिक्कार तुझ पर जो गीदड़ वार हुआ
व्यर्थ न जाएगा लहू , प्रतिध्वनि चहुँ
क्रोधाग्नि ज्वाला सम फूटी बच न पाएगा कहू
विश्वबंधुत्व एकता अखण्डता की यह लड़ी
माँ भारती के आशीषों पर है हर कड़ी
विफल रहेगी विचलित करने की कूटनीति
भारतवर्ष है चलित नवनिती रणनीति