जय श्री राम
जय श्री राम
भारत भूमि है सदा राम मय, राम है भारत का पर्याय।
ब्रह्मांड के सृजक राम ही, आद्योपांत जन जन में समाय।।
असंतोष में संतुष्टि हैं राम, सर्वज्ञ भी हैं समष्टि हैं राम।
कोटि-कोटि वर्षों से सर्वदा, विस्तीर्ण चतुर्दिक सृष्टि हैं राम।।
अतुलनीय छवि सुन्दर न्यारी, है तेरी दशरथ नन्दन राम।
धीर गंभीर प्रमुदित करुणानिधि, मर्यादा सदा सुखधाम।।
पुरुषोत्तम हो तुम जगपालक, ओ अवध दुलारे लाल।
आज खड़ी वह शुभ घड़ी, जिसकी बाट जोही कई साल।।
जन-जन की तुम हो आस्था, मन-मन की तुम आस।
आन बसो सिंहासन अपने, अब भक्तों की बुझा दो प्यास।।
सृष्टि के हर रूप में जिस प्रभु, की है सत्ता का वास।
अयोध्या के कण-कण में आज, है उसका ही आभास।।
हर्षित है पर्ण-पर्ण और तृण-तृण, खुशियों से है गाता।
भारत ही क्या सकल विश्व, श्रीराम भक्ति का डंका बजाता।।
अवधपुरी की सभी दिशाएँ, विहँस बोल उठीं हैं आज।
हर हृदय हो रहा आलोड़ित, राम लला घर रहे विराज।।
देवालय की घंटी मधुर-सी, अवध में रघुवर तेरी आस।
तेरा सुमिरन श्वास स्पंदन, भक्त को दे जीवन आभास।।
राम हमारे हृदय बसे हैं, हर पल मुख पर उनका नाम।
सब मिल बोलो जय राम जय राम, जय जय जय जय जय सियाराम।।
राम हर मन में राम हर जन में, राम है भारत का मर्म।
राम है धड़कन राम है जीवन,राम है स्वयं ही एक धर्म।।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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