जय माँ शारदे
प्रणाम मातु शारदे,
सुकाव्य काव्य कीजिए ।
सुवर्ण तूलिका रहे,
यही अशीष दीजिए ।
प्रकाश ज्ञान का भरो,
अबुद्धि का विनाश हो ।
कुरीतियाँ मिटे सभी,
सुनीति का विकास हो ।।
कुदृष्टि दृष्टि दूर हो,
अगम्य गम्य पंथ हो ।
उदारता बनी रहे,
मिटा मलीन भाव को ।
प्रचंड ज्वाल में जला,
विकार मातु शारदे ।
मनुष्यता सदा रहे,
असन्त सन्त तार-दे ।।
✍️ अरविन्द त्रिवेदी
उन्नाव उ० प्र०