जय जवान जय किसान
था कर्मठ जो इन्सान।
ध्येय था जिनका
जय जवान जय
किसान।।
मथ कर धरती
अपने परिश्रमरूपी
श्वेदमथनी से
कर रोपित असंख्य
नवांकुर था
दिया जो नारा
जय जवान जय
किसान।
हैं राष्ट्र की
आत्मा जो
फूँकते हैं
मनुज में
स्वशक्ति कर होम
है भूल सकता
कैसे
भला यह
राष्ट्र उनको भला।
ऐसे उस कर्मठ
इन्सान को
राष्ट्र को
बनाने समृद्धवान को
है मेरा शत् शत्
प्रणाम।