जयकार हो जयकार हो सुखधाम राघव राम की।
जयकार हो जयकार हो सुखधाम राघव राम की।
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दृग में बसे रघुनाथ पावन धाम हैं हर याम की।
जयकार हो जयकार हो, सुखधामा राघव राम की।।
हनुमान हैं जिनको प्रिये अरु पूज्य जो हनुमान के।
अवतार ले अवधेश आलय पग पड़े भगवान के।
छवि देखते त्रिपुरेश है जग में नियंत्रण काम की।
जयकार हो जयकार हो, सुखधामा राघव राम की।।
पग बाँध पैजनिया ठुमकते आज कौशल्या सुवन।
अवधेश उर अनुराग उपजे, और पुलकित है भुवन।
सबके हृदय में वास करते यह कथा सुखधाम की।
जयकार हो जयकार हो, सुखधामा राघव राम की।।
तारक अहिल्या नाथ रघुवर आप ही चिंतामणि।
प्रभु ताड़का मारीच हन्ता आप ही अंबरमणि।
दृष्टांत केवल आप हैं शुभ कर्म के अविराम की।
जयकार हो जयकार हो, सुखधामा राघव राम की।।
शिव का सरासन तोड़ रक्षक हैं बने श्रित मान की।
वरमाल शोभित है गले अरु संग में बधु जानकी।
सुख सार केवल राम ही मिथिलेश के निज धाम की।
जयकार हो जयकार हो सुखधाम राघव राम की।।
पितु मान अक्षुण्ण ही रहे वन को चले लै जानकी।
प्रतिमान स्थापित किया प्रभु आपने संतान की।
तज कर गये सुख राजसी चिन्ता नहीं परिणाम की।
जयकार हो जयकार हो सुखधाम राघव राम की।।
सीता हरण दशरथ मरण क्या क्या सहे कैसे कहें।
वनवासी बन वन में रहे प्रभु कष्ट नाना विधि सहे।
अविचल रहे अरु शान्त मन ऐसी व्यथा अभिराम की।
जयकार हो जयकार हो सुखधाम राघव राम की।।
सबरी निहारत पंथ नैनन आस लै रघुनाथ की।
दृग में बसा श्री राम को छवि देखती भव नाथ की।
धर ध्यान केवल जाप में रत राम के बस नाम की।
जयकार हो जयकार हो सुखधाम राघव राम की।।
संजीव शुक्ल ‘सचिन’