जमीन
हैरान हैं उड़ते हुए परिन्दे
देखकर इंसान की लाचारी
और अकेलापन
इंसान को खुद की ही बनाई
एक चारदीवारी में कैद
संक्रमण का जैविक आपदा से
अजीब सा डर है चेहरे पर इंसान के
नहीं निकल पा रहा है वह बाहर
फड़फड़ा रहा है अपने घर में
पिंजरे में कैद परिन्दे की तरह
देखकर जमीन अपनी………..
गुमान रहता है इंसान को
सामर्थ्य पर अपने
छू लेने का आकाश की ऊंचाइयां
पहुंचकर किसी ऊंचाई पर
नहीं पड़ते हैं पांव ज़मीन पर उसके
भूल जाता है अक्सर जमीन अपनी…..
परिन्दे जानते हैं आना है उनको
पेड़ों पर बने घोसलों में अपने
भरने के बाद सामर्थ्य से ऊंची उड़ान
आकाश की ऊंचाई के साथ
भूलते नहीं हैं कभी जमीन अपनी……..