जमीनें छीन के करते
सिखाते क्यों हमें हो तुम वही इतिहास की बातें
दिलों में घोलकर नफरत नये विश्वास की बातें
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बताओ घर बनेगा क्या हमारा आसमानों में
जमीनें छीन के करते सदा आवास की बातें
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कहाँ से हो कठौती में हमारे गंग की धारा
बिठाई ना मनों में जब कभी रविदास की बातें
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बहाकर अश्क भी यारो कहाँ दुख दूर होते हैं
गमों से पार पाने को करो परिहास की बातें
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हमारे देवता जो हैं करम तक आ न पाये हैं
दिया पतझड़ हमेशा ही, कही मधुमास की बाते
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हुआ होगा कभी मजनू जिसे था प्यार रूहों से
मगर इस युग चली आयी सदा सहवास की बातें
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मुझे लगती नहीं अच्छी ‘मुसाफिर’ फितरतें तेरी
अगर बरसात भी हो तो करोगे प्यास की बातें
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© लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’