जमीं भी बोलती है साथ अंबर बोल उठता है
ज़मीं भी बोलती है साथ अंबर बोल उठता है
हमारी आगवानी को समंदर बोल उठता है
कोई भी साथ दे न दे मुसीबत में हमेशा ही
दुआओं का असर मां की ही बढ़कर बोल उठता है
बहुत ज़्यादा दिनों तक तो नहीं चलती मेरी अनबन
कभी मैं तो कभी वो ही तड़पकर बोल उठता है
कि जब हारा थका इक अन्नदाता हल चलाता है
गगन भी मुस्कुरा देता है बंज़र बोल उठता है
कभी मेहनत से कर्मों की हथौड़ी को चलाओ तो
लगन से बेजुबां बेजान पत्थर बोल उठता है
बताऊँ क्या भला ताक़त कलम की जान लो साहब
कलम चलती है तो गूँगा भी हँसकर बोल उठता है
सुकान्त तिवारी