जमा थे जो पत्थर वो हथियार निकले
जमा थे जो पत्थर वो हथियार निकले
यहाँ रहने वाले ही गद्दार निकले
बचाने जो आए थे इस देश को अब
वो खुद ही तो चोरों के सरदार निकले
कभी जो यहाँ हँसते थे दूसरों पर
हक़ीक़त में ख़ुद भी मजेदार निकले
ये फूलों का गुलशन था जिसके भरोसे
वो माली ही इसके खरीदार निकले
उठाये हकों की जो आवाज़ याँ पर
वही देश के फिर गुनहगार निकले
खबर को भी जैसे दबाया गया हो
तरफदार झूठों के अखबार निकले