जमाने वाले
” गज़ल”
अब नही बसर यहां, ये खुदगर्ज जमाने वाले है
चढ़ते हुवे आफताब को सलाम करने वाले है
दिल,दोस्ती,रिश्तेदारी सब निभाने की कोशिश में
नही पता था की हमने आस्तीन में सांप पाले है
गनीमत है की समझ आया खेल बड़ी देर से सही
खिलाड़ी को खेल यहां शर्तो पे खिलाने वाले है
कितना भी समझा लो ना समझेंगे ये नासमझ
इनकी आंखों में पर्दे और दिमाग में कईं जाले है
लजीज दावत का मजा ले भी तो कैसे ले ” राणा”
जब जीभ में हो छाले और तीखे गर्म निवाले है
© ठाकुर प्रतापसिंह राणा
सनावद (मध्यप्रदेश)