**जमाने को क्या हो गया**(गजल/गीतिका)
सच कहना भी उसका ,गुनाह हो गया।
लगता है मानव आज का, कहीं खो गया।
चला था बताने को, राह जमाने में,
देख हालातो को, बैठ एकांत में रो गया।।
सभी तो लगे है भाई,कमाने की दौड़ में।
खाने को निवाला नहीं पास जिसके ,भूखा ही सो गया।।
सृजन के बीज लेकर ,निकला कोई बन्दा।
काम था उसका बोने का, बो गया।।
करता रहा दिन रात एक किसान।
पकी फसलों को, बेमौसम पानी धो गया।।
इधर सुना, उधर सुना, चारो और एक ही गूंज।
देखो देखो अनुनय, जमाने को क्या हो गया।।
राजेश व्यास अनुनय