जब हृदय में ..छटपटा- जाती.. कोई पीड़ा पुरानी…
जब हृदय में ..छटपटा- जाती.. कोई पीड़ा पुरानी…
जब रसा को मूक कर दे ..आत्मघाती कोई कहानी..
जब नयन में नीर ,,बनके तीर से गड़ने लगे,
हो व्यथित जब कह ना पाए कलम भी अपनी जबानी…
तब नयन के आस्मा में..
बन के जो ज्वाला खटकते..
बन के अश्रु वे टपकते।।
बन ना पाए हैं जो ज्वाला बन के अंगारे दहकते
मृत्यु से पहले न जाने कितने अरमा आह भरते
टूटते विस्मृत पलो में कितने किस्से है अखंडित
स्वयं से भी हार कर औे र अपनों से भी हो उपेक्षित
झंझा के झोंकों से झरते,
खुद की दुनिया से बिछड़ते ,
तब गगन से खिन्न होकर टूट कर तारे बिखरते,
बनके अश्रु वे टपकते।।
Priya Maithil