*जब से हुआ चिकनगुनिया है, नर्क समझ लो आया (हिंदी गजल)*
जब से हुआ चिकनगुनिया है, नर्क समझ लो आया (हिंदी गजल)
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1)
जब से हुआ चिकनगुनिया है, नर्क समझ लो आया
हड्डी-पसली एक हो गई, बूढ़ी कर दी काया
2)
यह कब साधारण बुखार है, एक भयंकर राक्षस
यह मायावी रोग समझिए, फैली इसकी माया
3)
हाथ और पैरों में सूजन, सौ-सौ कॉंटे चुभते
जिसको हुआ चिकनगुनिया वह, पैर कहॉं रख पाया
4)
तन में दुर्बलता है भारी, लगता सींक-सलाई
पता नहीं लौटें वे कब दिन, तन को लगता खाया
5)
कपड़े कैसे पहन-उतारें, कंधे सब जकड़े हैं
हाय चिकनगुनिया ! कंधों ने चौबिस घंटे गाया
6)
हाथों ने ताकत खोई है, मुट्ठी कब बॅंध पाती
रोम-रोम में कमजोरी का, कातर भाव समाया
7)
दुष्ट अरे ओ रोग भला क्यों, मेरे ही घर पहुॅंचा
यह तो बता पता मेरा क्यों, किसने तुझे बताया
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कातर = भयभीत
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615 451