जब से तेरी मेरी दोस्ती हो गई।
गज़ल
काफ़िया- ई स्वर की बंदिश
रद़ीफ- हो गई
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212……212…….212……212
उनको तब से बड़ी बेकली हो गई।
जब से तेरी मेरी दोस्ती हो गई।
दोस्ती ऐसी दोनों की इक बात है,
दो बदन और जाँ एक ही हो गई।
रूप उसने सँवारा तो ऐसा लगा,
जैसे कंचन की वो कामिनी हो गई।
कंस कन्या को जब मारने को चला,
हाथ से छूट कर दामिनी हो गई।
बढ़ती मँहगाई रोटी के लाले पड़े,
चुन के सरकार गल्ती बड़ी हो गई।
दूर रहते हैं सब कोई मिलता नहीं,
दूर हम सबसे सबकी खुशी हो गई।
आँखों में आँखें थीं हाथ में थी कलम,
इश्क होना था पर शायरी हो गई।
प्रेम से उसने देखा है प्रेमी मुझे,
दिल ही दिल में बड़ी दिल्लगी हो गई।
……✍️ प्रेमी