जब से तुझसे नज़र मिलाई है
जब से तुझसे नज़र मिलाई है
चैन पड़ता न नींद आई है
प्यार को लोग क्यों बुरा कहते
दर्दे-दिल की यही दवाई है
तू नहीं सामने , न पास मेरे
हर घड़ी ज़िन्दगी पराई है
बोल कर झूठ जीत पाये क्या
चुप ही बैठो के जगहंसाई है
मश्विरे के बिना उठाए क़दम
मात इस बार फ़िर से खाई है
मिल गया है उसे ख़जाना क्या
जो वो सुनता नहीं दुहाई है
नेकियां कर के ढोल मत पीटो
भूल जाने में ही भलाई है
सबकी उम्मीद हो गई ज़ीरो
क्या सियासत में रहनुमाई है
नाम ‘आनन्द’ क्यों रखा इसका
जिसकी किस्मत में बेवफ़ाई है
– डॉ आनन्द किशोर