जब सिस्टम ही चोर हो गया
सेवा की खातिर बैठा है लेकिन रिश्वतखोर हो गया
किससे हम उम्मीद लगाएँ, जब सिस्टम ही चोर हो गया
सीधे-साधे लोगों को तो पल-पल तिल-तिल बस रोना है
धूर्तों के बिस्तर पर चाँदी, चाँदी के ऊपर सोना है
जितना चाहे उतना अब तो झूठ जगत में पैर पसारे
सच्चाई को इस दुनिया में मुश्किल से मिलता कोना है
झूठ आजकल जीत रहा है, सत्य बहुत कमजोर हो गया
किससे हम उम्मीद लगाएँ, जब सिस्टम ही चोर हो गया
बाजों से भी तेज नज़र इन घोटालेबाजों की होती
जनता के आँसू में देखो ढूँढ रहे हैं हीरे–मोती
करदाता बदहाल हुआ है किंतु कमीशनखोर मजे में
इनकी ऐयाशी का बोझा सच कहता हूँ जनता ढोती
कोई दीप जलाओ भाई अंधेरा घनघोर हो गया
किससे हम उम्मीद लगाएँ, जब सिस्टम ही चोर हो गया
घूस लिया वह घूस खिलाकर, खुद को सबसे पाक बताए
लोगों से धन लेता रहता, गलत करे पर क्यों शरमाए
जनता भी इज्ज़त ही देती डर वश या मजबूरन भाई
सीना चौड़ा कर के चलता, रहता हरदम रोब जमाए
एक जगह की बात नहीं है चलन यही हर ओर हो गया
किससे हम उम्मीद लगाएँ, जब सिस्टम ही चोर हो गया
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 19/01/2023