“जब लगा वक्त थम सा गया”
“जब लगा वक्त थम सा गया”
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घर था मेरा जब एक छात्रावास ,
उस वक्त पढ़ता था, नौवीं क्लास ,
स्कूल नहीं जा सका,था जो उदास,
यकायक शिक्षक आ गए मेरे पास ,
वो पल था जब “वक्त थम सा गया !”
आज भी है मुझे अच्छी तरह याद ,
जब खेलने आते थे दोस्त मेरे पास ,
बिछती लूडो व शतरंज की बिसात ,
जिसे फाड़ने आ जाती माॅं अकस्मात,
जब लगता था कि “वक्त थम सा गया !”
प्रेमिका के साथ करता था घंटों बात ,
निर्निमेष ही कट जाती थी सारी रात ,
ख़्वाबों में डूबा,कि कब होगी वो साथ,
सहर होते चला जाता करने मुलाक़ात,
ऐन वक्त पे जमा हो जाते सारे काइनात,
ये घड़ी थी “जब लगा वक्त थम सा गया!”
© अजित कुमार “कर्ण” ✍️
~ किशनगंज ( बिहार )
( स्वरचित एवं मौलिक )
तिथि :- 27 / 03 / 2022.
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