जब भर पाया ही नहीं, उनका खाली पेट ।
जब भर पाया ही नहीं, उनका खाली पेट ।
धीरे-धीरे हो गए, सपने मटियामेट ।।
सपने मटियामेट, हो गए आह न आई ।
लेकर खाली पेट, संग तज गई लुगाई ।।
टूट गया विश्वास, ईश कुछ काम न आया ।
सूख गए सब अश्रु, उन्होंने जब भर पाया ।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी