जब बोया पेड़ बबूल का , तो आम का फल कहाँ से मिलेगा
छोड़ कर दुनिया का साथ , सब को जाना ही पड़ेगा
अरमानो का खजाना छोड़ , जाना ही जरूर पड़ेगा
जेब तो भर ली अपने खजाने से इतनी की हद हो
गयी इस को संभालने में , अब क्या करे इंसान
बन बैठा हैवान, शैतान, और बनता है अब अनजान
सोचा लेना, जाने वाले के कफन में कभी जेब नहीं होती !!
कोशिश तो की थी की साथ ले जाऊँगा यह कौडिओं को
जिस्म जैसा भेजा था उस ने , वैसा ही वापिस मांग लिया
बस फर्क इतना पैदा हो गया अब यहाँ से जाने में मेरे
साफ़ सुथरा आया था, पापों का घड़ा भरा साथ हो लिया !!
कर्मो का हिसाब-किताब , किताब में दर्ज हो गया है
जैसा बोया था मैने, उस को काटने का समां आ गया है
वहां न होगा मेरा संगी साथ कोई, यह समझाना पड़ेगा
जब बोया पेड़ बबूल का , तो आम का फल कहाँ से मिलेगा !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ