जब बेटा पिता पे सवाल उठाता हैं
पिता को भी दर्द होता हैं
जब बेटा अपने कर्तव्य से मुकरता हैं
जिन आंखों का था कभी पिता हिरों
आज बेटा उसी से पूछता हैं
कि किया क्या हैं मेरे लिए
ये सुनकर पिता का कलेजा फटता हैं
फिर उसके आंखों के सामने ये दुनिया जीरो लगता हैं
पिता को भी दर्द होता हैं
जब बेटा पिता पे सवाल उठाता हैं
जिस उंगली को थामकर चलना सीखा
जिस कंधे पे चढ़कर ये दुनिया देखा
आज बेटा उसी से पूछता हैं
किया क्या हैं आपने मेरे लिए
ये जानकर पिता का आत्मा रोता हैं
फिर उसके आंखों के सामने ये दुनियादारी झूठा लगता हैं
पिता को भी दर्द होता है
जब बेटा पिता से रूढ़ली बातें करता है
जिसने देती जवानी अपना
जिसको चाहा खुद से ज्यादा
आज बेटा उसी से पूछता हैं
किया क्या हैं आपने मेरे लिए
ये सुनकर पिता का रोम-रोम कांपता हैं
फिर उसे ये बंधन-बंधन नहीं मौत का जाल नजर आता हैं।।
पिता को भी दर्द होता हैं
जब बेटा पिता को पिता नहीं ,एक बोझ समझता हैं।।
नितु साह
हुसेना बंगरा,सीवान-बिहार