जब ‘बुद्ध’ कोई नहीं बनता।
जग अँधियारा होता है,
जब ज्ञान दीप नही होता,
मन अँधियारा होता है,
जब ‘बुद्ध’ कोई नहीं बनता।
तृष्णा के चक्र में उलझे ,
दुःख को वह स्वयम् पकड़े,
रहता है दुःख के संग सदा,
जब ‘बुद्ध’ कोई नहीं बनता।
कर्म कांड का जाल बिछाकर,
अंध विश्वास में डूबे इंसान,
भ्रम में सदा लिप्त रहता,
जब ‘बुद्ध’ कोई नहीं बनता।
मोह लोभ क्रोध में जो फसता,
तर्क संगत से जीवन नहीं जीता,
समस्याओ का बोझ ढ़ोता है सदा,
जब ‘बुद्ध’ कोई नहीं बनता।
बुद्ध बनो ज्ञान प्रकाश जगे,
दुःख है दुःख का कारण व निवारण,
दुःख से मुक्ती का मार्ग मिला,
‘बुद्ध’ बना दुःख से निकला।
रचनाकार ✍🏼
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।