जब “बुढ़ापा” अकेले बिताना ही था
अब समझ आया क्यों कि इतना हाय तोबा की मैंने ना अपना यहां एक दिन का ठिकाना था।
जब बुढ़ापा अकेले गुजारना ही था।।
क्यों कि मैंने इतनी लोभ लालच मेहनत,
अपना पेट काट सबका पेट भरना जो था।
जब बुढ़ापा अकेले गुजारना ही था।।
क्यों औरों को अपना माना, अपनो को अपने से भी ज्यादा चाहा, सारे रिश्ते नाते मुझे निभाना ही था।
जब बुढ़ापा अकेले गुजारना ही था।।
खुद भूखा रहकर, अपनी प्यास तो परे रख,
धन जमा किया मैंने गर होना गैर जमाना ही था।
जब बुढ़ापा अकेले गुजारना ही था।।
ना कोई अपना काम आना था ना पराया काम आना था। ना धन काम आना था ना माया काम आनी थी।
मेरे किये का सबक था, जो जिंदगी को मुझे सिखाना ही था।
जब बुढ़ापा अकेले गुजारना ही था।।