जब बनना था राम तुम्हे
जब बनना था राम तुम्हे, दुर्योधन बन कर बैठ गये।
जब करना था काम तुम्हे, स्वार्थ साध कर बैठ गये।।
निगम रखा था नाम तुम्हारा, निर्गुण बन कर बैठ गये।
आशा की एक आप किरण थी, नित्यानंद मे रहती थी।।
मोह माया मे नही आप थी, माया मे फस कर बैठ गई।
लोभ और लालच पास नही थे, उन को पकड़कर बैठ गये।।
सुन्दर कितना जीवन था, आदर्श सभी के आप रहे।
ना जाने क्यो प्रेम की ममता और रामलाल को भूल गये।।
जब बनना था राम तुम्हे, दुर्योधन बन कर बैठ गये।
प्रेम की डोर ज्योंही टूटी, बिन माला के बिखर गये।।
यही थी सीख क्या मां की तुमको, जो हस्ते गाते रूठ गये।
भूल गए क्या सत्संग को तुम, उन्नती अपनी भूल गये।।
याद करो तुम अपनी ताकत, जब एक साथ मे रहते थे।
ज्यादा नही है बात पुरानी, जब एक थाल मे खाते थे।।
अहम के अपने शिखर को छूकर, मुहँ की खाके बैठ गये।
एक थे जबतक किया कमाल, अब बान्ध लगोटी बैठ गये।।
जब बनना था राम तुम्हे, दुर्योधन बन कर बैठ गये।
बड़े होने का फर्ज भूलकर, मुहँ को फुलाकर बैठ गये।।
याद करो तुम मां की ममता, एक सीध मे चलते थे।
ममता की ताकत भूल गये, अब इधर-उधर को चलते हो।।
समय नही है निकला अभी, मुठ्ठी बन्द तुम हो जाओ।
अभी समय है निखर सको तो, एक साथ तुम हो जाओ।।
अल्प अल्प है अभी अल्प ये, इसमे खुश मत हो जाओ।
अभी समय है बनो विशाल, संकीर्ण सोच मत हो जाओ।।
जब बनना था राम तुम्हे, दुर्योधन बन कर बैठ गये…