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28 Jan 2024 · 1 min read

जब पीड़ा से मन फटता है

जब पीड़ा से मन फटता है
बुनने वाला कोई ना हो
दिल के टुकड़े बिखरे हो
चुनने वाला कोई ना हो
जब दर्द शब्द में ढल कर भी
कंठ के अंदर सिमटा है
जब लब कहने को आतुर हो
सुनने वाला कोई ना हो
जब मन किं पीडा आंखो के राहो से बहती है
मै हल्का होता रहता हु
और सुनियार कायर कहती है।

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