जब निहत्था हुआ कर्ण
दोनों ओर ही मची है अभी घोर ताना तानी
कोई ना किसी से कम अपनी है मनमानी
आज कुरुक्षेत्र भी एक नया इतिहास रचेगा
शायद इन दोनों में से ही नहीं कोई बचेगा
दोनों को ही पूरा घमंड है अपने बल का
पर विधाता ने गढ़ा आज का दिन छल का
कर्ण को क्या मालूम रथ का पहिया फंसेगा
नागसेन अर्जुन को क्या काल उसे डंसेगा
आशंकित मन है कर्ण का रथ से उतरकर
धंसे पहिये को निकालने के पीछे पड़ा है
और उनके सामने एक और कुंती पुत्र ही
सारथी कृष्ण के संग तीर ताने खड़ा है
हे अर्जुन तुमको ही नहीं मुझे भी तुमसे
आज ही इसी रणभूमि में युद्ध करना है
और याद रख लो मैंने भी ये प्रण लिया है
मेरे ही हाथों से रणभूमि में तुम्हें मरना है
किसी युद्ध का कहाॅं रहा है कभी यह धर्म
किसी निहत्थे शत्रु पर वार करना है अधर्म
मेरे रथ के फॅंसे पहिये को तो निकलने दो
मुझे भी तुम थोड़ा बहुत तो संभलने दो
बस अब कुछ पल की ही तो बात है
व्यर्थ में बिना अर्थ तुम हुंकार न भर
निहत्थे पड़े हुए किसी भी योद्धा पर
नासमझ बनकर अस्त्रों से वार न कर
जब तुम्हारे अपने प्राण पर बन आया
तो अब धर्म और अधर्म की बात करते हो
खुल कर ये क्यों नहीं कहते हो कर्ण कि
तुम अपने प्राण के अंत को देख डरते हो
उस समय तुम्हारा युद्ध धर्म कहाॅं गया था
जब निहत्थे अभिमन्यु पर वार किया था
सभी कायर योद्धाओं ने साथ मिलकर
उन्हें चारों ओर से घेर कर मार दिया था
जब रजस्वला नारी का बाल खींच कर
दुष्ट दु:शासन उसे भरी सभा में लाया था
खुली ऑंखों से नहीं देख सकने वाला
कहर सबके सामने उस पर ढ़ाया था
उस दिन उस घड़ी उस भरी राजसभा में
निर्ल्लज्ज की भांति मौन क्यों तुम पड़े थे
इस बात का कहीं कोई भी विरोध न कर
सभी पापी कौरवों के साथ तुम खड़े थे
आज अभी अचानक इस विकट घड़ी में
जब स्वयं तुम्हारी जान पर बन आई है
तो तुम्हारे मन में मृत्यु से भय के कारण
अचानक धर्म अधर्म की बात आई है
समय गंवाकर अब देर मत करो पार्थ
इनके व्यर्थ की बातों पर मत जाओ
चुपचाप अपनी ऑंखों को बंद कर
तुम इन पर सीधे अपनी बाण चलाओ
कृष्ण द्वारा अभी कही गई सारी बातें
अर्जून के क्रोध का ताप को बढ़ा रहा था
अर्जुन भी अब फिर से अपने धनुष पर
युद्ध का निर्णायक बाण चढ़ा रहा था
आज तो रण में सामने योद्धा था बड़ा
पर दुर्भाग्य से निहत्था बनकर था खड़ा
लाचार बनकर झेलेगा अर्जुन का प्रहार
ऑंखें बंद कर करेगा अंत को स्वीकार