जब देश के रक्षक खुद भक्षक बन जाते है
जब देश के रक्षक खुद भक्षक बन जाते है
कुर्सी में बैठे लोग मूक दर्शक बन जाते है
देखो संसद भी गूंज जाती है अपने स्वार्थ के नारों से
आरोप प्रतिआरोप की होली होती संसद और चौबारों में
नाजने कितने सच दफ़न होते है कुर्सी के अभिनंदन में
नाजने कितनी लाशें बिछती है कुर्सी के वंदन में
नाजने कितने झूठे मक्कार वहाँ जा बैठे है
जिनको होना था सलाखों के पीछे
वो सरकार बनाए बैठे है
देश की मर्यादा का किसने संसद में जिक्र करा
रेप, हत्या,और गरीबी से किसने देश को मुक्त करा
सब के सब झूठे वादे करके तिजोरी भर जाते है
भूल जाते है जनता को बस झूठे वादे रह जाते है
देश के कोनों(बार्डर)में नाजने कितनी अर्थी सजती है
देश की राजनीति नाजने कितने सुहाग ले उजड़ती है
संसद में चर्चा करने से कुछ नही होने वाला
दो उन्हे आज़ादी फिर देखो
सोने को चिड़िया वाला देश
गुलाम नहीं होने वाला
गुलामी की जंजीरे तुमने वीरों पर टांग दी
आज़ाद देश को फिर गुलामी इनाम दी