जब चोट गहरी हो
बहुत बेचैन होती हैं
वो घडियां
जब चोट तो गहरी हो,
पर जख्म नजर न आता हो।
भीतर से कुछ
दरक रहा हो
पल पल ,
और ऊपर से
कर दिया गया हो प्लास्टर
मुस्कान का,
जिसमें हर टूटन,
हर दरार,
छुप गई हो।
जब अंदर कोई
चीख चीख कर
रोना चाहता हो,
लेकिन बाहर
घनघोर शांति हो,
बहुत ठंडी होती है
वो घडियां,
आंसुओं के अकाल की,
खुद से करते सवाल की,
मन की मद्धम चाल की,
खुद के होने के मलाल की…..
बहुत निर्णायक होती है
वो घडियां
जब किसी ने अंदर पकते हुए
जख्म को
नासूर बनाकर झेला हो….
जब कोई
टूटकर भी
दुनिया के इस मेले में
नितांत अकेला हो …..