“जब तू मुझको मिली थी”
वो रात बड़ी मनचली थीं,
जब तू मुझको मिली थी।
तेरी आंखों में डूबा था,
बात करने का आनोखा तरीका था।
कितनी सुनसान वो गली थी,
जब तू मुझको मिली थी।
डरी सहमी थोड़ी घबराईं थी,
मुझे देख थोड़ा शरमाईं थी।
हवा का खूबसूरत झोंका था।
जो उसकी लट्टो को चहरे पर ले आता था।
देख इक चिंगारी मन में भी जली थी।
जब तू मुझको मिली थी।
इक निशानी तूने वाहा गिर आईं थीं।
तेरी पायल को आज भी सीने से लगाईं थी।
फिर मुलाकात हो तुझसे कहीं यहीं सोचता हूं।
अबकी बार तुझे बिना कुछ कहे जाने नहीं दूगा।
बहुत दिन हुए जब प्यार की हवा चली थी।
जब तू मुझको मिली थी।