जब तुम मिलोगे प्रिय!
कैसे भर नयन उठा तुझे देखूँगी,
संकोच से हृदय भार कैसे सम्भालूँगी,
इन अश्रुओं से तेरे पाँव पखारूँगी,
अपने स्पंदन को कैसे रोक पाऊँगी,
जब तुम मिलोगे प्रिय!
तेरा बाट जोहते सूनी मेरी आँखें,
झर-झर बहते नीर निर्झर जैसे,
तेरे राह में मन अपना बिछा दूँगी,
तुझको अर्पण अपना सर्वस्व करूँगी,
जब तुम मिलोगे प्रिय!
बिन तेरे विकराल हुई सभी बेला,
बिस्तर लागे जैसे मेरी मृत्यु शैय्या,
पुष्पों की बेल से श्रृंगार सजाऊँगी,
तेरे मन के सुवास से महक उठूँगी,
जब तुम मिलोगे प्रिय!
तुझसे विरह हो व्यर्थ मेरी साँसें,
क्षण-क्षण बीते युगों के जैसे,
तेरे सानिध्य से जीवित हो उठूँगी,
थरथराते ओठों को समीप लाऊँगी,
जब तुम मिलोगे प्रिय!
बारिश की बूँदे चुभें हिय में तीर सी,
जनम भर की मैं ठहरी अतृप्त प्यासी,
संकुचित तेरी प्रतीति मन पे ओढ़ लूँगी,
रंग में तेरे रंग तुझ सी हो जाऊँगी,
जब तुम मिलोगे प्रिय!
जीवन भर का ये वियोग कैसे सहे विरहिणी,
एक मिलन की आस में लुटाए सर्वस्व अजानी,
आलिंगन को तेरे समेटे तर जाऊँगी,
तेरे आसन्न के सुख-सागर में डूब जाऊँगी,
जब तुम मिलोगे प्रिय!
स्वरचित एवं मौलिक।
(कविता झा ‘गीत’, नई दिल्ली)