जब तक हम भीड़ से,समूह में नही बदलेंगे
जब तक हम भीड़ से
समूह में नहीं बदलेंगे
जब तक अपनी बिखरी हुई
एकता को नहीं समेटेंगे
जब तक अपनी छोटी-छोटी
शक्तियों को एकत्रित कर
एक हो,भेड़ियों के मुँह में
हाँथ डाल उसे फाड़ने की
न सोचेंगे, न हिम्मत करेंगे
भेड़िये शिकार पे निकलते रहेंगे
हम शिकार बनते रहेंगे
क्यूँ कि भेड़िए शिकारी अच्छे होते हैं
वो घात लगाते हैं, वो पहरे पे रहते हैं
वो जोश में रहते हैं वो होश में रहते हैं
वो खून कि बू को सूंघते हुए चलते हैं
वो आँखों में खून की लाली लिए रहते हैं
वो सपनों में खोये हुए,
अपने में समोए हुए लोगों की
अनवरत तलाश में रहते हैं
उनके उदर को फाड़
आँतों और दिलों के
घात में रहते हैं,
वो ताक में रहते हैं
वो खून को चखते हैं
वो शिकार पे रहते हैं
इस लिए जरूरी है
उनके मुहों को फाड़ना
अपने छोटे-छोटे हाथों के समूहों से
ताकि हमारी नस्लों की फ़सलें जिन्दा रहे,
ताकि हमारी उम्मीद ज़िंदा रहे…
भेड़िये को तुम शांति और अहिंसा का
पाठ नहीं पढ़ा सकते
उसे दूसरा गाल नहीं बढ़ा सकते
उससे लड़ना ही होगा
उसे फाड़ना ही होगा
उसे मारना ही होगा
…सिद्धार्थ