जब टूटा था सपना
टूटा था सपना भी बिना आवाज किये
सिसकियाॅं भी मेरी कोई सुन ना सका
इतनी बेवफा निकली थी वो भी कि
मैं फिर और कोई सपना बुन ना सका
खुली हुई खिड़की को नित्य निहारना
कभी मेरी एक आदत सी हो गई थी
मालूम भी नहीं अब वो गई कहाॅं है
क्या किसी अंधेरी गुफा में खो गई थी
एक पागल से अधिक नहीं रही है
अब इस गली में मेरी भी पहचान
कुत्तों से भी हो गया है अपना याराना
जिस्म में बांकी कहाॅं कुछ भी जान
अभी तक इतने धोखे खाये हैं मैंने
पुराने जख्मों का भी अब दर्द नहीं
मेरी दीवानगी की हरकतें देख कर
दिखता कहाॅं कोई भी हमदर्द कहीं
दुनिया में लोग मुझे अब क्या कहेंगे
चिंता कहाॅं रही इस बात की कभी
प्यार में इतना सब कुछ हो गया है
ताने सुनने को बची है जान भी अभी