जब जमघट छंट जाता है
जब जमघट छंट जाता है,
नितांत अकेलापन तब सताता है,
कुछ समय पहले, ख़ुशियाँ थी, अपनापन था,
हसीं ठठा था, अपने थे, बेगाने थे,
सब थे, सब साथ थे,
त्योहारों का मज़ा और एकाकीपन का मज़ाक था,
अब जा चुके हैं सब अपनी अपनी राह,
यादों का झरोखा सब याद दिलाता है,
अकेलापन और सताता है,
जब जमघट छंट जाता है !!