जब-जब
परिस्थिति जब खड़ी विषम हो,
और अन्याय के संग भीष्म हो ।
अधर्म संग द्रोण खड़े हों,
धर्म अधर्म के बने धड़े हों ।
अधर्मियों की भीड़ खड़ी हो,
हक पाने में रुकावट बड़ी हो ।
सत्ता बल का जब साथ मिला है,
तब तब अन्याय को बल मिला है ।
जब जब किसी का हक छिना है,
तो धरा पर ही नरक बना है ।
अधर्म संग भीष्म, द्रोण, कर्ण,
असहाय धर्म भटके जब वन वन ।
जब पोषित हो अन्याय सरासर,
तब आये हैं भूचाल धरा पर ।
अधर्मियों का संहार हुआ है,
बलशाली लाचार हुआ है ।
वक्त-घड़ी जब आ जाती है,
अहंकार की दुनिया मिट जाती है ।
डूब जाती है अन्याय की नैया,
फिर हर भीष्म को है शर शैया ।