“जब छलता है मानव तो”
जब छलता है मानव तो; प्रकाश जैसी होती है उष्मा
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अधर तक आकर मिल प्रश्नों से; मौन उत्तर देती है उष्मा।
ये दिव्यरूप सी बालाएं देखो कैसे कुंदन हो जाती हैं
जगमग जगमग शीर्ष पर होकर; हाँ एकांकी कहलाती हैं।
मौन समाधि चुनती जब जिंदा जीवन मिल सांसों से
लौ बन जाती हर ईक की खातिर; खुद जल कर हाँ देती है उष्मा।
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मुझे तो लगता प्रेम वजह बस ; घृणा नहीं छुती है इनको
खुद में निर्मल भाव को जीती हाँ पावन कर जाती हैं उष्मा।
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जब छलता है मानव तो………⏳
©दामिनी नारायण सिंह