जब किनारा हो गया है
जब किनारा हो गया है
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बेवफा से जब किनारा हो गया है
खिलखिलाता मन हमारा हो गया है
जरुरतें सीमित अगर हो जिन्दगी में
इस जहाँ में फिर गुजारा हो गया है
खिल गई है आज जो कल अधखिली थी
मन लुभावन फिर नजारा हो गया है
हर कदम रखना डगर पहचानकर ही
भाग्य का समझो सहारा हो गया है
ठोकरों में भी नहीं जो हार मानें
कष्ट से उसका किनारा हो गया है
कल तलक दुख से भरा जो वक्त बीता
आज खुशियों का पिटारा हो गया है
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य