जब आप सुबह उठ कर
जब आप सुबह उठ कर
और रात सोने से पहले
पेट को महसूस करते हुए
रशोई की ओर देखते हैं
खोजते हैं रशोइ की मालकिन को
असल में आप खोज रहे होते हैं …
अन्न रूपी ईंधन को
जो खींच सके आप के देह की गाड़ी
जो उगाया गया था …
किसी खेत में
किसी दरार भरी हथेलियों के
अटखेलियों के बीच
असल में आप खाना चाहते हैं
किसी किसान के
खून पसीने से उगाए अन्न को
तब आप की हम सब की
नैतिक ज़िम्मेदारी बनती है कि सोचें
अन्न के पीछे खड़े उस आखिरी इंसान के बारे में …
~ सिद्धार्थ